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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?

अथवा
मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी भाषा वैज्ञानिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. पालि भाषा का हिन्दी से क्या सम्बन्ध है?
2. पालि का परिचय दीजिए।
3. पालि भाषा की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
4. पालि भाषा का हिन्दी को क्या योगदान है?
5. अपभ्रंश भाषाओं की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।

उत्तर -

मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा

प्राचीन भारतीय आर्य भाषा के व्याकरणिक नियमों की जटिलता के कारण उसका प्रचलन जन सामान्य के लिए कठिन हो गया तथा संस्कृत भाषा विकास के क्रम में जनता से दूर हो गई। इसके साथ ही जनभाषाएँ अबाध गति से विकसित होती रहीं। जब जनता में इस अपभ्रष्ट भाषा का प्रयोग बढ़ा तो संस्कृत केवल शिक्षित समुदाय की भाषा हो गई। इस बदलाव के फलस्वरूप 500 ई. पूर्व से मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा का उदय हुआ, जिसे काल क्रमानुसार तीन भागों में विभक्त किया गया है -

1- पालि (600 ई. पू. से प्रथम शती तक).

2- प्राकृत (प्रथम शती से छठीं शती तक).

3- अपभ्रंश (छठीं शती से 10 वीं शती तक)।

(क) पालि - मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा में सर्वप्रथम पालि भाषा का विकास हुआ। जब संस्कृत साहित्यिक स्तर पर सर्वोत्कृष्ट थी, तब पाली भाषा ग्रामीण भाषा के रूप में विद्यमान थी। सर्वप्रथम गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का अभियान चलाने के लिए जनवाणी को राष्ट्रवाणी का रूप दिया। पालि भाषा में जब साहित्य रचना हुई तो इसका महत्व बढ़ गया और वह जन भाषा और साहित्य भाषा दोनों रूपों में विद्यमान हो गयी।

पालि भाषा का विकास क्षेत्र पाटलिपुत्र को माना गया है और इसका विकास मागधी के आधार पर माना गया है। पालि का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से होने के कारण इसका अधिक प्रचार-प्रसार हुआ। कलिंग कौशल, उज्जैन, मालवा विंध्य प्रदेश और मध्य प्रदेश में इसका अधिक प्रचार-प्रसार था। पालि बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ न केवल समग्र भारत की भाषा बन गयी वरन् उस युग मे उसका अन्तर्राष्ट्रीय महत्व हो गया था और उसका प्रसार चीन, जापान, श्रीलंका, ब्रह्मा, आदि देशों तक था। सम्राट अशोक के अभिलेख इसके ऐतिहासिक महत्व को प्रतिष्ठित करते हैं। पालि में गौतम बुद्ध के उपदेशों के संग्रह त्रिपिटक कथाएँ, अष्ठ कथा जैसे- बौद्ध धर्म के समग्र ग्रन्थ लिखे गये थे।

विशेषता - पालि भाषा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -

1- पालि में तीन लिंग है, किन्तु वचन दो ही हैं। पालि में द्विवचन का प्रयोग नहीं होता।

2- स्वरों में ऋ, लृ, ऐ, औ लुप्त हो गये हैं।

3- ॠ के स्थान पर कहीं 'उ' तथा कहीं, 'अ' हो गया है। जैसे - वृद्ध, बुड्ढों, नृत्य-नच्च।

4- पालि साहित्य देखने से पता चलता है कि आद्यांत पालि का एक रूप नहीं रहा।

5- पालि में तदभव शब्दों का प्रयोग अधिक रहा।

6- श, ष, स में केवल स रह गया।

7- बलात्मक आघात का प्रयोग पालि की विशेषता है।

8- पालि में व्याकरणात्मक सरलता की प्रवृत्ति लक्षित होती है।

9- व्यंजनात् शब्दों रूपों का अभाव है। व्यंजनान्त पद स्वरान्त हो गये।

10- आत्मने पद का प्रयोग लुप्तप्राय है, केवल परस्पमैपद का ही बाहुल्य है।

(ख) प्राकृत - मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा के विकास का दूसरा चरण प्राकृतों का है। प्राकृतों के विकास के साथ भाषाओं का क्षेत्रीय आधार स्पष्ट होने लगा। इस काल में बोलचाल में प्रचलित भाषाओं का विकास हुआ। प्रथम शती के आते-आते पालि भाषा के स्थान पर प्राकृत भाषा का विकास हुआ। प्राकृत महावीर जैन के उपदेशों के साथ ज्ञान दर्शन और साहित्य की भाषा थी। प्राकृत का अर्थ हैं जन की भाषा।

प्राकृत अत्यन्त ललित और मधुर भाषा थी। राजेश्वर ने तो यहाँ तक कहा कि - संस्कृत भाषा कर्कश और प्राकृत भाषा सुकुमार है तथा स्त्री और पुरुष में जो अन्तर होता है, वही इन दोनों भाषाओं में है। इस काल में क्षेत्रीय बोलियाँ कई थी, जिनकी संख्या निर्धारित करना कठिन है, जिसमें प्रमुख शौरसैनी, पैशाची, महाराष्ट्री मागधी और अर्द्ध मागधी है। कालान्तर में इन्ही प्राकृतों से आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का विकास हुआ।

1- शौरसेनी - यह प्राकृत मूलतः मथुरा या शूरसेन के आस-पास की बोली थी। पश्चिमी हिन्दी की बोलियों का विकास इसी प्राकृत से हुआ है। इसका विकास वहाँ की पालिकालीन स्थानीय बोलियों से हुआ। इस भाषा में कम परिवर्तन परिलक्षित होता है। इसलिए अन्य प्राकृतों की अपेक्षा यह संस्कृत से अधिक समीप है। संस्कृत नाटकों की गद्य भाषा शौरसेनी ही है। महाराष्ट्री से भी यह काफी बातों में मिलती-जुलती है। आधुनिक हिन्दी के विकास के सूत्र मुख्य रूप से शौरसेनी से ही सम्बन्धित है।

2- पैशाची - पैशाची भारत के सुदूर पश्चिमोत्तर भाग में बोली जाती थी। इस प्राकृत में साहित्यिक रचनाएँ न के बराबर थीं। इसे पिशाचों की भाषा के नाम भी जाना जाता है। पिशाच उन अनार्यों को कहा जाता था, जिन्होंने आर्य संस्कृति को पूरी तरह नहीं अपनाया था। सिन्ध, बिलोचिस्तान और कश्मीर की भाषा पैशाची थी। पैशाची में गुणाढ्य को बृहत्कथा लिखी गयी थीं, लेकिन उसका पैशाची मूल पाठ उपलब्ध नहीं है।

3- महाराष्ट्री - महाराष्ट्री मराठी का पूर्व रूप है। इसका प्रयोग मध्य प्रदेश में होता हैं। महाराष्ट्री को उस युग की प्रमुख प्राकृत माना जाता है। कुछ लोग इसे पद्य भाषा मानते है। महाराष्ट्री साहित्य की दृष्टि से सम्पन्न भाषा है। कालीदास, हर्ष आदि के नाटकों के गीतों की भाषा यही है। यही कारण है कि महाराष्ट्री प्राकृतों में प्रधान एवं आदर्श भाषा मानी गई है।

4- मगधी - मागधी मगध की भाषा थी। बिहारी, हिन्दी, बंगला, उड़िया तथा असमी का विकास इसी भाषा से हुआ है। नाटकों में इसका प्रयोग छोटे पात्रों के लिए हुआ है। महाराष्ट्री और शौरसेनी की तुलना में मागधी का प्रयोग बहुत कम मिलता है।

5- अर्द्ध मागधी - मागधी एवं शौरसेनी के मध्य की भाषा, अर्द्ध मागधी है। यही कारण है कि इसमें दोनों प्राकृतों की प्रवृत्तियाँ मिलती है। अवध और काशी जनपदों की भाषा थीं। पूर्वी हिन्दी का विकास अर्द्ध मागधी से हुआ है। अर्द्ध मागधी का प्रयोग मुख्यतः जैन साहित्य में हुआ है। जैनियों ने इसके लिए 'आर्ची' या आदि भाषा का प्रयोग किया है। इसमें अनेक साहित्यिक ग्रन्थ लिखे गये हैं।

विशेषताएँ - 1- प्राकृत भाषाओं में कुछ ध्वनियों में परिवर्तन आया। यद्यपि अनेक ध्वनियाँ पालि के निकट हैं, किन्तु कुछ ध्वनियाँ परिवर्तित हो गई हैं, ध्वनि परिवर्तन सबसे अधिक महाराष्ट्री तथा मागधी में हुए हैं।

2- प्राकृत में मूर्धन्यीकरण की प्रवृति और बढ़ गयी - स्थिति - ठिय पठति - पडिअ दोला, डोला, स्थान- ठाण।

3- शब्दों में अर्थ की दृष्टि से भी परिवर्तन हुए।

4- समीकरण, लोप और स्वर भक्ति की प्रवृत्तियाँ अधिक मात्रा में दिखाई देती है।

5- 'न' का स्थान 'ण' में लिया।

6- 'ट' का 'ड' तथा 'ठ' का 'ढ' हो गया - घट - घड, मठिका - मढिया।

7- 'प' का 'व' हो गया - ताप - ताव, लोप - लेव।

8- शब्द मध्यम ख, घ, थ, ध और भ के स्थान पर 'ह' रह गया, जैसे- मुख - मुह, गंभीर - गहिर, बधिर - बहिर, कथन - कहण।

9- द्विवचन का प्रयोग समाप्त हो गया।

10- प्राकृतों में अधिकांश शब्द तद्भव है।

11- प्राकृत में व्याकरणिक नियमों में और सरलता आयी। संस्कृत के सन्धि-नियम शिथिल हो  गये और अनावश्यक प्रतीत होने लगे, केवल चार लकारें रह गयी, भूतकाल के तीन भेदों के स्थान पर केवल दो भेद रह गये।

अपभ्रंश - मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल के तृतीय काल में बोलचाल की भाषाओं से विकसित अपभ्रंश भाषाएँ आती हैं। अपभ्रंश का अर्थ है बिगड़ा हुआ। 'संस्कृत के वैयाकरणों ने संस्कृत के अतिरिक्त समस्त भाषाओं को अपभ्रष्ट कहा है, किन्तु भारतीय इतिहास में आभीरों की भाषा को अपभ्रंश कहा गया है। कुछ विद्वानों ने प्राकृत के एक उपरूप के अन्तर्गत अपभ्रंश को महत्व दिया है। अधिकांश विद्वानों के मतानुसार अपभ्रंश प्राकृतों और आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के बीच की संयोजक कड़ी है। विभिन्न ग्रन्थों में अपभ्रंश के अन्य नाम 'ग्रामीण' भाषा, अवहत्थ अवहट्ट आदि मिलते हैं। डा. हरदेव बाहरी ने इसे आभीरों की भाषा कहा है, जबकि डॉ. भोलीनाथ तिवारी इसे प्राकृत का परवर्ती रूप में मानते हैं। डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के अनुसार साहित्यिक प्रकृतों का ही अपभ्रष्ट रूप जन भाषाओं के रूप में विद्यमान था जो आगे चलकर साहित्यिक बना। इस प्रकार जितनी प्राकृतें थी उतने ही उनके अपभ्रष्ट रूप भी विकसित हुई।

अपभ्रंश का काल 1000 ई. तक माना जाता है। इसके बाद आधुनिक भाषाओं का काल शुरू होता है। लेकिन आरम्भ के लगभग दो तीन सौ वर्षों की भाषा अपभ्रंश और आधुनिक भाषाओं के बीच की है। इस बीच के काल को 'संक्रातिकाल' परवर्ती अपभ्रंश या अवहट्ट नामों का प्रयोग किया गया है। 'अवहट्ट' शब्द संस्कृत शब्द अपभ्रंश का विकसित या विकृत रूप है। इस काल की भाषाएँ व्यवस्थित तथा साहित्यिक रूप ग्रहण कर प्राकृत से मुक्त होकर आधुनिक भाषाओं के निकट आती हैं। इस काल की उपलब्ध कृतियों में 'संदेश रासक' प्राकृत पैगंलम्, वर्ण रत्नाकर, कीर्तिलता, ज्ञानेश्वरी आदि उल्लेखनीय हैं।

विशेषताएँ - 1 - अपभ्रंश में प्रायः वही ध्वनियाँ थीं, जो संस्कृत से चली आ रही थीं तथा उनमें प्राकृतों तक के परिवर्तन तेजी से बढ़े हैं। इसलिए अपभ्रंश का झुकाव संस्कृत की अपेक्षा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की ओर अधिक है।

2- अपभ्रंश की प्रवृत्ति आयोगात्मक की है। विभक्तियाँ शब्दों से जुड़ने के बदले परसर्गों के समान अलग से प्रयुक्त होने लगती है।

3- अपभ्रंश की प्रवृत्ति की महत्वपूर्ण विशेषता सरलीकरण की प्रवृत्ति है। इसके कारण कारकों के रूप केवल तीन रह गए। वचन एवं लिंग भी दो रह गये। द्विवचन एवं नपुंसकलिंग समाप्त हो गया।

4- अपभ्रंश ने तद्भव और देशज शब्दों की संख्या बहुत बढ़ गयी।

5- संस्कृत में संयोगात्मक रूप के कारण शब्द को वाक्य में कही भी रख देने से अर्थ पर प्रभाव नहीं पड़ता था, परन्तु अपभ्रंश में शब्द का स्थान निश्चित हो गया।

6- अपभ्रंश में दीर्घ, मूर्धन्य व्यंजन तथा महाप्राण व्यंजन लाने की प्रवृत्ति विशेष रूप से परिलक्षित होती है।

7- पुरुषवाचक सर्वनामों में भी कमी आयी।

8- क्रिया काल रूपों में जो विविधता थी वह कम हो गयी।

9- तिड़त के बदले कृदंत रूपों का प्रयोग होने लगा।

10- ड, द, न, र के स्थान पर 'ल' हो गया। जैसे - प्रदीप्त - पालिन्त।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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